फ़िल्मी गानों के धुनों की डोर, में अपने शब्दों को पिरोने का, एक तुच्छ प्रयास!!!
Wednesday, 30 April 2014
लौट गए...
मनाने आये थे जो खुशियाँ, मेरी बर्बादी के आलम पर
मेरे चेहरे की रौनक देख, वो फीके रंग ही लौट गए !!! मेरे दुश्मन भी आये थे, पलटने तख़्त-ओ-ताज मेरा मेरी फकीरी देखि तो, वो भी बे-जंग ही लौट गए !!! गिराने आये थे मुझको, ज़माने की निगाहों में ज़मीन पर बैठा देख, वो बे-रंग ही लौट गए !!! जो आये थे दबंग बन, तमाशा करने महफ़िल में मेरे तराने सुनकर वो, बिना हुडदंग ही लौट गए !!! किये कितने ही दर सजदे, मुझे दर-दर भटकाने की मुझे हर दिल में देखा तो, वो होकर दंग लौट गए !!! जो लेने आये बहरूपिये, दोस्त बन उल्टी राहों पर हौसलों की ताकत देखि तो, बिना मुझे संग लिए ही लौट गए
रुके रहे हम इन्तेज़ार में, जिनके दस्तक की वो बे-रहेम हमसे, बिन मिले ही लौट गए !!!